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5 जून - पर्यावरण- दिवस #environmentday 5 जून - पर

5 जून - पर्यावरण- दिवस #environmentday 
5 जून - पर्यावरण- दिवस.

कभी-कभी लोग पर्यावरण बचाने का मतलब यह समझते हैं कि पेड़-पौधों का संरक्षण करना है,और इसके लिए वो पर्यावरण  दिवस के अवसर पर कहीं 2, 4 पौधे लगा देते हैं ,उनके साथ एक सेल्फी ले लेते हैं और सोशल मीडिया के वाल पर चिपका कर अपने जिम्मेदारी को पूरा घोषित कर देते हैं।  लेकिन केवल ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। 'पर्यावरण-संरक्षण' एक बहुत ही व्यापक अवधारणा है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत एक इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। इसलिए पर्यावरण को बचाने का मतलब है, पादप जगत, जंतु जगत, प्राकृतिक स्थलाकृतियों, नदियों जंगलों और भौगोलिक दशाओं सब को सम्मिलित रूप से संरक्षित रखने का प्रयास।  यहाँ 'पर्यावरण-संरक्षण' का अर्थ कदापि अपनी आवश्यकताओं और उपभोग को रोकने से नहीं लिया जाना चाहिए, बल्कि संरक्षण का अर्थ प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के साथ उनके पुनःभरण की आदतों को हमारे जीवनचर्या में शामिल करने से है। प्रकृति-प्रदत्त जिन चीजों का हम इस्तेमाल करते हैं, हमारे प्रयासों के द्वारा आवश्यक रूप से उनका पुनर्भरण हो सके , ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए। 
 हम एक ही दिशा में काम करते हैं, और वह दिशा है अपनी आवश्यकता पूर्ति हेतु पर्यावरण का अंधाधुंध दोहन।
इस क्रम में हमने पारिस्थितिक तंत्र महत्वपूर्ण चक्रों जैसे - जल-चक्र, कार्बन-चक्र, नाइट्रोजन-चक्र और फास्फोरस -चक्र सबको बिगाड़ कर रख दिया है। जिसका सीधा प्रभाव मौसम और जलवायु में अवांछनीय बदलावों के रूप में देखा जा सकता है।
विभिन्न प्रकार का प्रदूषण जैसे- जल-प्रदूषण, भूमि-प्रदूषण, मृदा- प्रदूषण, वायु-प्रदूषण तथा रासायनिक- प्रदूषण, ये सारे हमारे ही विवेकहीन और एकदिशिक पर्यावरण दोहन के परिणाम हैं। हम इसके लिए धरती के किसी अन्य जीव को उत्तरदायी नहीं कह सकते क्योंकि हमारे अतिरिक्त धरती पर कोई अन्य ऐसा जीव नहीं है, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी कृत्रिम ऊर्जा-स्रोत का इस्तेमाल करता हो।
अपनी मांसपेशियों पर बोझ कम करने और अतिशय आनंद प्राप्ति की चाहत में हमने गैर- प्राकृतिक ऊर्जा-स्रोतों पर अपनी निर्भरता बढ़ाई है। जिसका परिणाम पर्यावरण असंतुलन के रूप में हमारे सामने,  हमें हमारे बंधु  बाँधवों समेत लील जाने के लिए मुँह फाड़े खड़ा है।
5 जून - पर्यावरण- दिवस #environmentday 
5 जून - पर्यावरण- दिवस.

कभी-कभी लोग पर्यावरण बचाने का मतलब यह समझते हैं कि पेड़-पौधों का संरक्षण करना है,और इसके लिए वो पर्यावरण  दिवस के अवसर पर कहीं 2, 4 पौधे लगा देते हैं ,उनके साथ एक सेल्फी ले लेते हैं और सोशल मीडिया के वाल पर चिपका कर अपने जिम्मेदारी को पूरा घोषित कर देते हैं।  लेकिन केवल ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। 'पर्यावरण-संरक्षण' एक बहुत ही व्यापक अवधारणा है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत एक इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। इसलिए पर्यावरण को बचाने का मतलब है, पादप जगत, जंतु जगत, प्राकृतिक स्थलाकृतियों, नदियों जंगलों और भौगोलिक दशाओं सब को सम्मिलित रूप से संरक्षित रखने का प्रयास।  यहाँ 'पर्यावरण-संरक्षण' का अर्थ कदापि अपनी आवश्यकताओं और उपभोग को रोकने से नहीं लिया जाना चाहिए, बल्कि संरक्षण का अर्थ प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के साथ उनके पुनःभरण की आदतों को हमारे जीवनचर्या में शामिल करने से है। प्रकृति-प्रदत्त जिन चीजों का हम इस्तेमाल करते हैं, हमारे प्रयासों के द्वारा आवश्यक रूप से उनका पुनर्भरण हो सके , ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए। 
 हम एक ही दिशा में काम करते हैं, और वह दिशा है अपनी आवश्यकता पूर्ति हेतु पर्यावरण का अंधाधुंध दोहन।
इस क्रम में हमने पारिस्थितिक तंत्र महत्वपूर्ण चक्रों जैसे - जल-चक्र, कार्बन-चक्र, नाइट्रोजन-चक्र और फास्फोरस -चक्र सबको बिगाड़ कर रख दिया है। जिसका सीधा प्रभाव मौसम और जलवायु में अवांछनीय बदलावों के रूप में देखा जा सकता है।
विभिन्न प्रकार का प्रदूषण जैसे- जल-प्रदूषण, भूमि-प्रदूषण, मृदा- प्रदूषण, वायु-प्रदूषण तथा रासायनिक- प्रदूषण, ये सारे हमारे ही विवेकहीन और एकदिशिक पर्यावरण दोहन के परिणाम हैं। हम इसके लिए धरती के किसी अन्य जीव को उत्तरदायी नहीं कह सकते क्योंकि हमारे अतिरिक्त धरती पर कोई अन्य ऐसा जीव नहीं है, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी कृत्रिम ऊर्जा-स्रोत का इस्तेमाल करता हो।
अपनी मांसपेशियों पर बोझ कम करने और अतिशय आनंद प्राप्ति की चाहत में हमने गैर- प्राकृतिक ऊर्जा-स्रोतों पर अपनी निर्भरता बढ़ाई है। जिसका परिणाम पर्यावरण असंतुलन के रूप में हमारे सामने,  हमें हमारे बंधु  बाँधवों समेत लील जाने के लिए मुँह फाड़े खड़ा है।