ये जो सूरज में इतनी गर्मी है न जाने कौन सी बेचैनी है जो सदियों से सीने में इसने उठा रखी है ... ए चांद ज़रा तू ही चूम आ उस उबलते सीसे को तेरी ठंडक से शायद बहल जाये वो आग जो न जाने कब से इसके सीने में धधकती है Musings 3/2/19