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अनजान से सफर में एक दोस्त अनजान शहर था, अनजान लोग

अनजान से सफर में एक दोस्त अनजान शहर था, अनजान लोग थे |
मंजिल का पता था, रास्ते की खबर न थी|
थोडे से सहमें, थोडे से घबराये थे|
समय अागे बढा था, नए दोस्त भी बने थे|
सबका अपना अंदाज था, बस एक से मिलता मिजाज था|
वो कुछ खट्टा कुछ मिठा था, बस लगता अपना था|
उस अनजान से शहर मे, मुझे मेरा दोस्त मिला था|
 सपने मै बुनती हूं, पूरा वो कराता है |
हारती हूं मैं जब भी, हौसला वो बढाता है|
छोटी सी भी गलती पे, वो हक से डॉट लगाता हैं| दोस्त मेरा मेरे जैसा हैं|
अनजान से सफर में एक दोस्त अनजान शहर था, अनजान लोग थे |
मंजिल का पता था, रास्ते की खबर न थी|
थोडे से सहमें, थोडे से घबराये थे|
समय अागे बढा था, नए दोस्त भी बने थे|
सबका अपना अंदाज था, बस एक से मिलता मिजाज था|
वो कुछ खट्टा कुछ मिठा था, बस लगता अपना था|
उस अनजान से शहर मे, मुझे मेरा दोस्त मिला था|
 सपने मै बुनती हूं, पूरा वो कराता है |
हारती हूं मैं जब भी, हौसला वो बढाता है|
छोटी सी भी गलती पे, वो हक से डॉट लगाता हैं| दोस्त मेरा मेरे जैसा हैं|
triptisingh3967

Tripti Singh

New Creator