अनजान से सफर में एक दोस्त अनजान शहर था, अनजान लोग थे | मंजिल का पता था, रास्ते की खबर न थी| थोडे से सहमें, थोडे से घबराये थे| समय अागे बढा था, नए दोस्त भी बने थे| सबका अपना अंदाज था, बस एक से मिलता मिजाज था| वो कुछ खट्टा कुछ मिठा था, बस लगता अपना था| उस अनजान से शहर मे, मुझे मेरा दोस्त मिला था| सपने मै बुनती हूं, पूरा वो कराता है | हारती हूं मैं जब भी, हौसला वो बढाता है| छोटी सी भी गलती पे, वो हक से डॉट लगाता हैं| दोस्त मेरा मेरे जैसा हैं|