तुम्हारे छोड़ कर जाने के बाद भी तुम्हारा एक हिस्सा मुझ मे रहता है तुम्हारी साँसों की महक... मैं अब भी रात के अँधेरों में बिस्तर पर औंधे मुहँ पड़े आँखे बंद कर तुम्हें सोचते ही सर से पांव तक महक उठती हूँ तुम्हारी उंगलियाँ महसूस होती है मेरे अधर को आहिस्ते से छूते हुए जैसे होंठों से पोंछ लेना चाहती हो दर्द में उठी काँपती सिसकियों को तुम्हारें गुलाबी दहकते होंठों को अक्सर महसूस करती हूँ पीठ पर मानो चूमने से पिघल जाएगा तुम्हारी यादों का जमा बर्फ़ तुम्हारें सांसो की गर्माहट मेरे गर्दन से यात्रा करती हुयी उतरती है मेरे नाभि द्वार तक जैसे मेरी आत्मा के सारे घाव उसकी आँच से सूख जाएंगे सारी रात तुम्हारी खुशबू ओढ़े मैं अपने बिस्तर पर पड़े तुम्हारे कभी लौट आने की सम्भावनाएं तलाश करती हूँ Tumhari mahak