मीरा तेरी वेदना समझ सका न कोय बाहर बाहर भजन करे और भीतर भीतर रोए कितना कष्ट सहा तूने मीरा इसका किसी को आभास न होय जोगन बन दर दर भटकी खुदको जैसे खोए कान्हा के प्रेम में यूं डूबी लोक लाज की न सुध बुध होय पावन निछल प्रेम था मीरा का फिर समझ सका न कोय यमराज बने जब राणा जी दे दी विष की प्याली भी कर लिया विषपान मीरा ने आत्मा तो कबसे मिल चुकी थी कान्हा जी से जाके मुक्त किया मीरा ने देह को क्योंकि दुनिया बस देह का प्रेम जाने हाय मीरा तेरा प्रेम अमर है जिसे समझ सका न कोय ©Savita Nimesh #प्रेम#दीवानी#मीरा