ख़याल है कि सवाल है? बता तेरा मिज़ाज क्या है जो कह चुके हों कि शाम तेरे घर की आकर ढलनी है उनसे रोष न कर तेरा यूँ ख़याल ही तो प्यार है न मैं पूरा हूँ न तू पूरा है जाने क्या फिर बार बार तेरे मन को हुआ है जो बातें प्यार में तू करता है उसे अपने पे भी ज़रा आज़मा नहीं है सवाल करने से पहले धैर्य बार बार यूँ खो देता है । बस फिर मेरे पास ख़ामोशी ही बच सा जाता है मेरे कहने पे छोड़ तू खुद अपने कहने पे नहीं आता है दुनियां की छोड़ ये तो लगाती है उल्फतें तुझे जाने क्यूँ बार-2 मुझसे यक़ीन उठ से चला जाता है । समझ भी चुका हूं समझा भी चुका, ज़रा ध्यान से पढ़, मेरा प्यार ही तेरी तरफ है बाकियों को बस मुझे भटकाने के लिए बस नाटक ही आता है लोग इसी बातों पे जले तो तेरा और मेरा क्या जाता है देख फिर तेरा धीरज यूँ रोज़ शाम के सूरज की तरह ढल की फिर रोज़ सुभहो तलक फिर चढ़ता जाता है तेरे सारे रोज़ के ये ताने तू फिर भी मुझे ही सुनाता है देख मुड़ के तू अपने साथ मुझे भी गिराता चला जाता है रहबर मेरे दिल है तू मेरा मन नहीं धमनियों में दौड़ता ये दो किस्में ख़ून यूँ उल्टा क्यों बहा जाता है सांस वही है और सोच भी एक ही है तू लिपट के फ़िर क्यों दूसरे से जलन खा के मन की ओर फिर बात बात पे चला जाता है कह दिया है जानिब तुझसे तू ज़माने के लिए क्यों और बातें बनाने में बदगुमां हम दोनों को क्यूँ बार बार किए जाता है मुझे इतना तो क़ाबिल बना... सुन ले जानिब मुहब्बत थी है और रहेगी मुहब्बत थी है और रहेगी ये हैडिंग्स के उल्टे फेरबदल बंद हों अबसे हवा सुनहानी ही बहेगी अगर इसके बाद कुछ भी उल्टा आया तो तुम्हारी क्लास ज़रूर लगेगी और मेरी क्लास की शुरुआत फिर तेरे जलन से ही शुरू रहेगी मुझे इतना तो काबिल बना..... क़ाबिलियत तुम्हारी कब छिन गयी