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जलती थी शिकायत अनिल अनल-सी अब अपने ही ख्यालों में

जलती थी शिकायत अनिल अनल-सी
अब अपने ही ख्यालों में खोने लगा हूँ।
देखें नही कोई आँखें मेरी अश्रुधारा को
यही सोचकर मैं एकांत में रोने लगा हूँ।
पीकर विष अब खुशी मनाता शिव-सा
गहरी साँसों से शाम-सा ढ़लने लगा हूँ।
परिचित कुछ परिचय सनातन रूप का
मैं एक नवव्यक्तित्व में निखरने लगा हूँ।
विजय पताका लहरा, इच्छा सरिता पर
बिनज्वारभाटा सा समुद्र बनने लगा हूँ।
गिला-शिकवा भी, खुद ही से कर लेता
मैं खुद को खुद से ही, बहलाने लगा हूँ।
मानना और जानना अलग है मुसाफ़िर
अब मैं आनन्दस्वरूप को पाने लगा हूँ।
सीखता हूँ आपसे मैं नादान! बहुत कुछ
होकर अभिप्रेरित थोड़ा लिखने लगा हूँ।
खोजता सत्य हरपल, कलम-किताब में
अब कुछ धुंधले चेहरे भी, पढ़ने लगा हूँ।
सहर्ष! पहन लिया हार तुम्हारी जीत हो!
अल्प! ही सही पर अब बदलने लगा हूँ।

©Anil Ray 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🌹🌹शुक्रिया दोस्तों 🌹🌹
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

बेबस मन को लेकर
बस बेकलम सा मैं
कोरा कागज-अरूचि स्याही
और अनपढ़ दिमाग़
जलती थी शिकायत अनिल अनल-सी
अब अपने ही ख्यालों में खोने लगा हूँ।
देखें नही कोई आँखें मेरी अश्रुधारा को
यही सोचकर मैं एकांत में रोने लगा हूँ।
पीकर विष अब खुशी मनाता शिव-सा
गहरी साँसों से शाम-सा ढ़लने लगा हूँ।
परिचित कुछ परिचय सनातन रूप का
मैं एक नवव्यक्तित्व में निखरने लगा हूँ।
विजय पताका लहरा, इच्छा सरिता पर
बिनज्वारभाटा सा समुद्र बनने लगा हूँ।
गिला-शिकवा भी, खुद ही से कर लेता
मैं खुद को खुद से ही, बहलाने लगा हूँ।
मानना और जानना अलग है मुसाफ़िर
अब मैं आनन्दस्वरूप को पाने लगा हूँ।
सीखता हूँ आपसे मैं नादान! बहुत कुछ
होकर अभिप्रेरित थोड़ा लिखने लगा हूँ।
खोजता सत्य हरपल, कलम-किताब में
अब कुछ धुंधले चेहरे भी, पढ़ने लगा हूँ।
सहर्ष! पहन लिया हार तुम्हारी जीत हो!
अल्प! ही सही पर अब बदलने लगा हूँ।

©Anil Ray 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🌹🌹शुक्रिया दोस्तों 🌹🌹
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

बेबस मन को लेकर
बस बेकलम सा मैं
कोरा कागज-अरूचि स्याही
और अनपढ़ दिमाग़
anilray3605

Anil Ray

Bronze Star
Growing Creator