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वह रात थी काली आंखों पर थी उसकी लाली डरा थोड़ा..

वह रात थी काली 
आंखों पर थी उसकी लाली 
डरा थोड़ा...! फिर खरी कि मैंने सवारी 
फूट-फूट कर रोई वह बेचारी

मानव था या दानव? 
आखिर कैसा था वह मानव 
जिस्मों को करके छल्ली 
छोड़ा ना कपड़ा बदन पर उसके जरा सी 

दिखाने मर्दानगी 
वह काली रात को निकले 
छिन के उजला सवेरा 
किसी की वह ठाट-बांट से निकले

ना शर्म, ना लज्ज़ा 
ना चेहरे पे खौंफ उनके जरा सी 
कैसी खौंफ? जब बैठी हो 
सिस्टम पर अब भी चोर जरा सी

खुद की घर की इज्जत पर कोई 
आंच ना आवें
और दूसरों के इज्जत की बोली 
वे झट से कर जावें

©R...Khan #वह#रात#थी#काली

#scared  Anshu writer  Saurav Das khubsurat gudiya  Ramjan Ali
वह रात थी काली 
आंखों पर थी उसकी लाली 
डरा थोड़ा...! फिर खरी कि मैंने सवारी 
फूट-फूट कर रोई वह बेचारी

मानव था या दानव? 
आखिर कैसा था वह मानव 
जिस्मों को करके छल्ली 
छोड़ा ना कपड़ा बदन पर उसके जरा सी 

दिखाने मर्दानगी 
वह काली रात को निकले 
छिन के उजला सवेरा 
किसी की वह ठाट-बांट से निकले

ना शर्म, ना लज्ज़ा 
ना चेहरे पे खौंफ उनके जरा सी 
कैसी खौंफ? जब बैठी हो 
सिस्टम पर अब भी चोर जरा सी

खुद की घर की इज्जत पर कोई 
आंच ना आवें
और दूसरों के इज्जत की बोली 
वे झट से कर जावें

©R...Khan #वह#रात#थी#काली

#scared  Anshu writer  Saurav Das khubsurat gudiya  Ramjan Ali
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R...Khañ

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