वह रात थी काली आंखों पर थी उसकी लाली डरा थोड़ा...! फिर खरी कि मैंने सवारी फूट-फूट कर रोई वह बेचारी मानव था या दानव? आखिर कैसा था वह मानव जिस्मों को करके छल्ली छोड़ा ना कपड़ा बदन पर उसके जरा सी दिखाने मर्दानगी वह काली रात को निकले छिन के उजला सवेरा किसी की वह ठाट-बांट से निकले ना शर्म, ना लज्ज़ा ना चेहरे पे खौंफ उनके जरा सी कैसी खौंफ? जब बैठी हो सिस्टम पर अब भी चोर जरा सी खुद की घर की इज्जत पर कोई आंच ना आवें और दूसरों के इज्जत की बोली वे झट से कर जावें ©R...Khan #वह#रात#थी#काली #scared Saurav Das