बिछुड़कर कारवां से, सफर जब तन्हा हो जाए लगता है डर, पल पल, मंजिल ना कहीं खो जाए बिछुड़कर कारवां से.......... हमराही बन जाता हैं कोई, साथ चलने के लिए कमी उसी की रोकती है, जुदा ग़र वो हो जाए बिछुड़कर कारवां से........... रास्ते हों जब खो गए, दूरिओं की ना हो ख़बर अजनबी की बातों पर भी, तब यकीं हो जाए बिछुड़कर कारवां से.......... अपनों से जब गैरों में पहुंचें, और दिल ना साथ दें रातो को नींद आती नही, सारा जहां जब सो जाए बिछुड़कर कारवां से.......... चलता है हर कोई ऐसे, बस में हो सब उसके जैसे राह मगर मिलती नहीं, मौसम अगर बिगड़ जाए बिछुड़कर कारवां से.......... बिछुड़कर कारवां से, सफर जब तन्हा हो जाए लगता है डर, पल पल, मंजिल ना कहीं खो जाए || # # # #