प्रीति चढ़ रही सब ही के ऊपर है। देखो देखो मधुमास, सर ऊपर है। देखो देखो मधुमास, सर उपर है। भोर हुई तो पंछी, चीं चींकर आये। भवरें फूलों से रस पी पीकर आये। अद्भुद मंद बयार चली मन भावन। माह बसंत लगे, सुंदर जैसे सावन। प्रीति चढ़ रही सब ही के ऊपर है। देखो देखो मधुमास, सर ऊपर है। प्रेम पूर्ण मौसम मे, विराग हुआ है। धरती से पत्तों को अनुराग हुआ है। पत्ते बिखर गये, डाली टूट पड़ी हैं। देखा मैने, नई कोपले फूट पड़ी हैं। प्रीति चढ़ रही सब ही के ऊपर है। देखो देखो मधुमास, सर ऊपर है। प्रातः काल दीप्ति, अवकिरणों से। मन आनंदित होता रविकिरणों से। खुद पर इतराते, नवल पात अभी। कलिओं के हाँ कोमल गात सभी। प्रीति चढ़ रही सब ही के ऊपर है। देखो देखो मधुमास, सर ऊपर है। फागुन का मनमोहक, रंग चढ़ा है। प्रेयसी का सुरूर अंग अंग चढ़ा है। होली का है रंग देखो संग चढ़ा है। रंगो के संग भईया , भंग चढ़ा है। प्रीति चढ़ रही सब ही के ऊपर है। देखो देखो मधुमास, सर ऊपर है। देखो देखो मधुमास, सर उपर है। ©surya pratap singh #कविता_संगम #विश्व_कविता_दिवस #zindagikerang