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कविता "विश्व को सर्मपित" हँसते रहो मिलते रहो फूल

कविता
"विश्व को सर्मपित"

हँसते रहो मिलते रहो 
फूलों कि तरह खिलते रहो
ना लाओ शिकन ऐ गुलबदन
अपने हैं लोग अपना है वतन
हँसते रहो मिलते रहो
फूलों के तरह खिलते रहो.....
ना लाओ बूरे सोच मन में
अच्छे बूरे दिन देखे सबने ने
 हँसते रहो मिलते रहो
फूलों के तरह खिलते रहो.....
कौन जानता वक्त किस करवटें बदले
अपनी धरती अपनी ही आकाश दहले
हँसते रहो मिलते रहो
फूलों के तरह खिलते रहो.....
कोई अपनी महत्वकांक्षाए खो नहीं सकता
"मन" को कपड़ों की तरह धो नहीं सकता
हँसते रहो मिलते रहो
फूलों के तरह खिलते रहो.....
यहाँ तो मिलन है और लिखी जुदाई है
ईश्वर ने सोच समझ कर श्रृष्टि बनाई है
हँसते रहो मिलते रहो
फूलों के तरह खिलते रहो.....
@anushi ka pitara

©Anushi Ka Pitara
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