ख्वाब-ए-पाकिज़ा सा है जूनून-ए-इश्क अब जो बेहद सा है अक्स-ए-जमील मेरे महबूब का पश्मीना सा है चश्म-ए-गुरेज़ा कातिलाना सा है रंग दुआओं का मेहंदी मे निखरा सा है एक आसमां ज़मी की अधूरी मुलाकात सा है शब-ए-हिज्र में मोहब्बत-ए-इबादत सा है सूकून-ए-दिल मे ला-फ़ानी सा है। एक ख़ूबसूरत #collab Cascade Writers की जानिब से। #चाहतोंकामज़ा #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi अक्स-ए-जमील:- खूबसूरत अक्स चश्म-ए-गुरेजा:- नशीली आंखे शब-ए-हिज्र:- जुदाई ला-फानी:- अमर