लोगो की परवाह ही कब थी, निकले तो हम भी अकेले थे मंजिल तक पहुचने की खातिर, संकट अनगिनत ही झेले थे पहुच के मंजिल पे जब मैने ,पीछे मुड़ दुनिया देखी लगे थे लोग कतारों में ,बस अपने लोगो के मेले थे उन लोगो में कुछ वो भी थे, जिन्होने पत्थर मारा था और कुछ ऐसे भी थे उनमें, बस पानी को दुत्कारा था कुछ और भी हैं जो पीछे से ,पैर पकड़ के गिराते थे कुछ थे जो खुद ठोकर देकर, खुद ही आके सहलाते थे कैसे बताऊं रस्ते में, कितने कांटे और कीले थे लोगो की परवाह ही कब थी, निकले तो हम भी अकेले थे हां, कुछ हैं, जिन्का कर्जा, अब भी सर पर मेरे हैं क्या इस जीवन भुगता पाऊंगा , बस यही सोच मुझे घेरे है कुछ सुने थे शब्द बाण जैसे, कुछ के शब्द सुरीले थे लोगो की परवाह ही कब थी, निकले तो हम भी अकेले थे बस निकले तुम भी ऐसे ही, बातो से किसी का क्या लेना गर मंजिल को पा जाओगे, फिर इन्हीं के रंग देख लेना फूलो की माला लायेंगे ,बोए जिन्होने कीले थे लोगो की परवाह ही कब थी, निकले तो हम भी अकेले थे #log #parwah #life #inspiration Logo ki parwah