मंझधार से कौन ? कहता है , की ; मैं , हार रहा मैं तो , उगते सूरज को ; निहार रहा निकाल रहा डूबती कश्ती को ; मंझधार से मैं तो करता ; हमेशा ,जीत से , प्यार रहा कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद मंझधार से.......कीर्तिप्रद