जिन्दगी के सफर में हम राह यूं ही चलते रहे। कई अजनबी दोस्त बने तो, दोस्त कई अजनबी हो गए। लम्हें शायद ना आए वो फिर, छूट गए है जो रस्तों में। याद आता है वो बचपन भर भर के किताबें बस्तों में। छोटी खुशी पचपन की वो, संभालना मुश्किल हो जाता। ख़ुशी के मारे दर दर फिरकर, ज़ाहिर करना क्या निराला था। कहा आज उतार दिया है, जिन्दगी ऐ तेरी कश्ती ने। फ़िराक़ में तो थे मंज़िल की, लो आज ऐ कहा आ गए।। - jivan kohli #solitary