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बहुत किया विलाप रुदन न भर अश्रु के कूप। हे नारी न

बहुत किया विलाप रुदन
न भर अश्रु के कूप।
हे नारी न रो अबला बन
धर काली का रूप।।

तेरे करुण रुदन से नहीं है
किसी का हृदय पिघलता।
भस्म न करेगी किसी पापी को
तेरी श्वासों की शीतलता।।
अबला नहीं बन तू सबला अब
अपनी शक्ति को पहचान।
जो रखे हाथ तेरे सम्मान पे
रख दे उस पे तू कृपाण।।
जो रखे कुदृष्टि तुझ पर अब
कर डाल तू उसे कुरूप।
हे नारी न रो अबला बन
धर काली का रूप।।

जो घात लगाए बैठे हैं विधर्मी
उनको भी तू पहचान।
मीठी बातों में हैं जो फँसाते
समझ तुझे नादान।।
मंशा जिनकी है अशुद्ध संस्कृति
का करना विस्तार।
ले तलवार बनकर क्षत्राणी
दे उनके सीने में उतार।।
पापी को दण्डित करना भी
है एक धर्म स्वरूप।
हे नारी न रो अबला बन
धर काली का रूप।।

बहुत किया विलाप रुदन
न भर अश्रु के कूप।
हे नारी न रो अबला बन
धर काली का रूप।।

 #नारीशक्ति #नारी #नारी_सम्मान #नारीसाधनानिहारिका #नारीसम्मान #कविता #कविताएँज़िंदारहतीहैं   #काव्यसंध्या
बहुत किया विलाप रुदन
न भर अश्रु के कूप।
हे नारी न रो अबला बन
धर काली का रूप।।

तेरे करुण रुदन से नहीं है
किसी का हृदय पिघलता।
भस्म न करेगी किसी पापी को
तेरी श्वासों की शीतलता।।
अबला नहीं बन तू सबला अब
अपनी शक्ति को पहचान।
जो रखे हाथ तेरे सम्मान पे
रख दे उस पे तू कृपाण।।
जो रखे कुदृष्टि तुझ पर अब
कर डाल तू उसे कुरूप।
हे नारी न रो अबला बन
धर काली का रूप।।

जो घात लगाए बैठे हैं विधर्मी
उनको भी तू पहचान।
मीठी बातों में हैं जो फँसाते
समझ तुझे नादान।।
मंशा जिनकी है अशुद्ध संस्कृति
का करना विस्तार।
ले तलवार बनकर क्षत्राणी
दे उनके सीने में उतार।।
पापी को दण्डित करना भी
है एक धर्म स्वरूप।
हे नारी न रो अबला बन
धर काली का रूप।।

बहुत किया विलाप रुदन
न भर अश्रु के कूप।
हे नारी न रो अबला बन
धर काली का रूप।।

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