Nojoto: Largest Storytelling Platform

बहती नदी सा वक़्त ---------------------- कल! आज और

बहती नदी सा वक़्त
----------------------
कल! आज और फिर कल बन जाता है।
जैसे बुलबुला पानी से जल बन जाता है।

यहाँ बहुत आए और बहुत से चले गए।
कभी तन्हा तो कभी कारवां बन जाता है।

बहती नदी सा वक़्त छोड़ता निशाँ अपने!
शान्त रहता है तो कभी ज्वार बन जाता है।

इस वक़्त के कई पहलू हमने देखे हैं।
कभी गांधी तो कभी बोस बन जाता है।

किनारे पर बैठ कर रेत से खेलते रहते हो!
इंसान तो वक़्त की कठपुतली बन जाता है।

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा वक़्त है।
'पंछी' वही है जो अहिंसा परमो धर्म् बन जाता है। बहती नदी सा वक़्त
----------------------
कल! आज और फिर कल बन जाता है।
जैसे बुलबुला पानी से जल बन जाता है।

यहाँ बहुत आए और बहुत से चले गए।
कभी तन्हा तो कभी कारवां बन जाता है।
बहती नदी सा वक़्त
----------------------
कल! आज और फिर कल बन जाता है।
जैसे बुलबुला पानी से जल बन जाता है।

यहाँ बहुत आए और बहुत से चले गए।
कभी तन्हा तो कभी कारवां बन जाता है।

बहती नदी सा वक़्त छोड़ता निशाँ अपने!
शान्त रहता है तो कभी ज्वार बन जाता है।

इस वक़्त के कई पहलू हमने देखे हैं।
कभी गांधी तो कभी बोस बन जाता है।

किनारे पर बैठ कर रेत से खेलते रहते हो!
इंसान तो वक़्त की कठपुतली बन जाता है।

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा वक़्त है।
'पंछी' वही है जो अहिंसा परमो धर्म् बन जाता है। बहती नदी सा वक़्त
----------------------
कल! आज और फिर कल बन जाता है।
जैसे बुलबुला पानी से जल बन जाता है।

यहाँ बहुत आए और बहुत से चले गए।
कभी तन्हा तो कभी कारवां बन जाता है।