किस्मत ने उलझाया तभी बाज़ी हारी हूँ । वरना जितना तो मुझे हर हाल में आया हैं । दोष मेरा हैं या मेरे अपनों का इस बात ने अभी तक सवाल बनाया । ये जंग ही हार चुकी हूँ । क्योकि अपनों ने ही तलवार उठाया हैं । गलत उनकी भी नहीं । शायद किस्मत ने ही ऐसा खेल रचाया हैं । कोन सही कोन ग़लत ये पता नहीं । पर हाँ बिना ग़लती सज़ा मैंने बखूबी पाया हैं । ##जिंदगी ##किस्मत