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खोला किये जो ही दिल की किताब हम,ख़्वाब अनकहे आँखों

 खोला किये जो ही दिल की किताब हम,ख़्वाब अनकहे आँखों में चले आये,
मेरी सोच से परे थी ख्वाबो की ये दुनिया, दो बूंद अश्क़ मेरे गालों पे ढले आये,
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कब चाहा था मैंने उस चाँद को पाना ,मेरी हदें तो ज़मीं के ढ़र्रे पे थी ठहरी,
दामन में गिरा चाँद तो जाना वजूद को ,क्यूँ बेवज़ह ही अपनी आँखों को मले आये,
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वो भी थी एक हक़ीक़त, कि एक ख़्वाब अधूरा सा मेरे दिल मे धड़कता था,
वक़्त ने ली करवटें तो मिट गई सब सिलवटे,संग कई यादों के सिलसिले आये,
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मेरी  ज़िंदगी  कभी  जो  बदतर   थी   मौत  से भी ,अब मुस्कुरा    उठी    थी,
जीने लगे वो ख़्वाब भी ,जो मृतप्रायः से थे, बड़े हसीं ख़ुदा के ये फैसले आये,
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कभी नज़्म में पली है ,कभी ग़ज़ल बन चली है मेरी ज़िंदगी कितने सुरों में ढ़ली है,
तितली सी चहकती है ,कलियों सी महकती है, दिन मेरी ज़िंदगी मे ये कितने भले आये।।
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-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #मेरेख्वाब