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आपकी नजर की अलाव को, तरसता है ये मन..... गीली लकड़ी

आपकी नजर की अलाव को, तरसता है ये मन.....
गीली लकड़ी सा ये मन सुलगता है देर तक.....
अपनी साँसों की गर्मी में छिपा लो..... 
और, पश्मीना बाहों का आलिंगन ओढा दो,.....
फिर कट जाएगी ये सर्दी मेरी......
बस यही तो चाहता है ये मन।🌿

©Manali Rohan
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Manali Rohan

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