हर आदमी अब शक के घेरे में है, इंसानियत का बजूद अब अंधेरे में है। जिंदा कौ़मे अब बची ही कहा है, धरती अपने आख़िरी फेरे में है। लम्बी फेहरिस्त है जुदा - जुदा क़ोमों की, खुदा न जाने किस मजहबी डेरे में है। इंसानियत का गला कटता यहाँ रोज, दरिंदे हर गली हर दगर हर बसेरे में है। #humanity #society #socialissues #casteism #yqdidi #yqbaba #hindipoetry #socialissue