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कविता का शीर्षक है: ऑनलाइन शिक्षा वक्त के साथ खुद

कविता का शीर्षक है: ऑनलाइन शिक्षा

वक्त के साथ खुद को ,
बदलना भी जरूरी है।
करोना जैसी महामारी में ,
खुद को बचाना भी जरूरी है ।। 

शिक्षा का मन्दिर तो बन्द पड़े हैं,
अन्धकार से प्रकाश की तरफ तुम कैसे ले आओगे ।
थोड़ा सोचो कुछ समझो, 
तब कुछ कर पाओगे ।।

आविष्कार तो बहुत हुए ,
पर तुम कैसे जुड़ पाओगे।
बड़े फोन रखे हो जेब में ,
इनका महत्व कब समझाओगे।।

गूगल मीट का जमाना है ,
घर बैठे ऑनलाइन पढ़ पाओगे।।
थोड़ा सोचो कुछ समझो ,
तब कुछ कर पाओगे ।। वक्त के साथ खुद को ,
बदलना भी जरूरी है।
करोना जैसी महामारी में ,
खुद को बचाना भी जरूरी है ।। 

शिक्षा का मन्दिर तो बन्द पड़े हैं,
अन्धकार से प्रकाश की तरफ लाना भी जरूरी है।।
कविता का शीर्षक है: ऑनलाइन शिक्षा

वक्त के साथ खुद को ,
बदलना भी जरूरी है।
करोना जैसी महामारी में ,
खुद को बचाना भी जरूरी है ।। 

शिक्षा का मन्दिर तो बन्द पड़े हैं,
अन्धकार से प्रकाश की तरफ तुम कैसे ले आओगे ।
थोड़ा सोचो कुछ समझो, 
तब कुछ कर पाओगे ।।

आविष्कार तो बहुत हुए ,
पर तुम कैसे जुड़ पाओगे।
बड़े फोन रखे हो जेब में ,
इनका महत्व कब समझाओगे।।

गूगल मीट का जमाना है ,
घर बैठे ऑनलाइन पढ़ पाओगे।।
थोड़ा सोचो कुछ समझो ,
तब कुछ कर पाओगे ।। वक्त के साथ खुद को ,
बदलना भी जरूरी है।
करोना जैसी महामारी में ,
खुद को बचाना भी जरूरी है ।। 

शिक्षा का मन्दिर तो बन्द पड़े हैं,
अन्धकार से प्रकाश की तरफ लाना भी जरूरी है।।