कविता का शीर्षक है: ऑनलाइन शिक्षा वक्त के साथ खुद को , बदलना भी जरूरी है। करोना जैसी महामारी में , खुद को बचाना भी जरूरी है ।। शिक्षा का मन्दिर तो बन्द पड़े हैं, अन्धकार से प्रकाश की तरफ तुम कैसे ले आओगे । थोड़ा सोचो कुछ समझो, तब कुछ कर पाओगे ।। आविष्कार तो बहुत हुए , पर तुम कैसे जुड़ पाओगे। बड़े फोन रखे हो जेब में , इनका महत्व कब समझाओगे।। गूगल मीट का जमाना है , घर बैठे ऑनलाइन पढ़ पाओगे।। थोड़ा सोचो कुछ समझो , तब कुछ कर पाओगे ।। वक्त के साथ खुद को , बदलना भी जरूरी है। करोना जैसी महामारी में , खुद को बचाना भी जरूरी है ।। शिक्षा का मन्दिर तो बन्द पड़े हैं, अन्धकार से प्रकाश की तरफ लाना भी जरूरी है।।