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"तन्हाई के इलाकों में यादों की चलती है ll सरकार या

"तन्हाई के इलाकों में यादों की चलती है ll
सरकार यादों की लेकिन रोज बदलती है‌ ll

 मुक्तभोगी भी यादें, भुक्तभोगी भी यादें, 
 बिना किसी इल्म के यादों की गलती है ll

 सिर्फ मैं मतदाता, अनेक यादें उम्मीदवार, 
 निर्णय के वक्त बेबस सोच हाथ मलती है ll

 झूठे वादों की झड़ी लगा रही हैं यादें, 
 सच में मुझे तुम्हारी कमी खलती है ll

 यादों की रैलियों का यही उपयुक्त समय है,  
 जब दिन ढलता है या जब रात निकलती है ll"

©Aditya kumar prasad
  मेरे अनकहे अल्फाज़

मेरे अनकहे अल्फाज़ #Shayari

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