चरख़े पे लिपटे मांझे सी ज़िन्दगी कुछ खुलती सी कुछ उलझती सी बांध के उम्मीदें और ख़्वाब एक बार और उड़ा दी है उस पार फिर से पतंग अपनी फ़िज़ूलियत - 14/1/20