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जो खुली आंखों से देखूं , तो सिर्फ अल्फ़ाज़ हो तुम।

जो खुली आंखों से देखूं , तो सिर्फ अल्फ़ाज़ हो तुम।

जो छुपकर पढूं तुम्हे, तो इक मीठा - सा एहसास हो तुम।

जो बेबाकी से बोल दूं महफ़िल में, तो शान हो तुम।

जो नींद में आ जाओ, तो हसीन ख्वाब हो तुम।

जो गुनगुना लूं तुम्हे, तो जिंदगी का तराना हो तुम।

जो दर्द में आराम दो, वो मरहम हो तुम।

जिसे बंद आंखों से भी देखु वहीं ख़ुदा की रहमत हो तुम। khud ki tarif
जो खुली आंखों से देखूं , तो सिर्फ अल्फ़ाज़ हो तुम।

जो छुपकर पढूं तुम्हे, तो इक मीठा - सा एहसास हो तुम।

जो बेबाकी से बोल दूं महफ़िल में, तो शान हो तुम।

जो नींद में आ जाओ, तो हसीन ख्वाब हो तुम।

जो गुनगुना लूं तुम्हे, तो जिंदगी का तराना हो तुम।

जो दर्द में आराम दो, वो मरहम हो तुम।

जिसे बंद आंखों से भी देखु वहीं ख़ुदा की रहमत हो तुम। khud ki tarif