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रिश्तों के मीठे पल को, कभी तीखा जहर जरूरी है। धरती

रिश्तों के मीठे पल को,
कभी तीखा जहर जरूरी है।
धरती और अम्बर रहने को,
कुदरत का कहर जरूरी है।

तुम को है मिली आजादी
तो औरों को भी भारी छूट,
मन की दुविधा को रोके
वह चुभती नज़र जरूरी है।

धन-दौलत शोहरत फिर ये
पल पल की इच्छा बाकी क्यों,
मुकम्मल नहीं है कोई यहाँ
ये अधूरी कसर जरूरी है।

तुमसे मेरे रोम-रोम और
प्रफुल्लित मन मयूर,
स्वप्निल मधुर अहसास ये
तुम संग बसर जरूरी है।

मिल मिला कर रहें यहाँ हम
एकल हो संसार,
गुंथे रहे सब एक माला में
ऐसा शहर जरूरी है।

किंचित भाव न हो मन में
मधुरित तुम्हारी बातों से,
पेडों की शीतल छाया में
ये सुन्दर पहर जरुरी है।

®राम उनिज मौर्य®
बनबसा जिला-चम्पावत गीत
रिश्तों के मीठे पल को,
कभी तीखा जहर जरूरी है।
धरती और अम्बर रहने को,
कुदरत का कहर जरूरी है।

तुम को है मिली आजादी
तो औरों को भी भारी छूट,
मन की दुविधा को रोके
वह चुभती नज़र जरूरी है।

धन-दौलत शोहरत फिर ये
पल पल की इच्छा बाकी क्यों,
मुकम्मल नहीं है कोई यहाँ
ये अधूरी कसर जरूरी है।

तुमसे मेरे रोम-रोम और
प्रफुल्लित मन मयूर,
स्वप्निल मधुर अहसास ये
तुम संग बसर जरूरी है।

मिल मिला कर रहें यहाँ हम
एकल हो संसार,
गुंथे रहे सब एक माला में
ऐसा शहर जरूरी है।

किंचित भाव न हो मन में
मधुरित तुम्हारी बातों से,
पेडों की शीतल छाया में
ये सुन्दर पहर जरुरी है।

®राम उनिज मौर्य®
बनबसा जिला-चम्पावत गीत

गीत