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मुरझाये चेहरे सबके और पूण्य धरा ये प्यासी है। बिन

मुरझाये चेहरे सबके और पूण्य धरा ये प्यासी है।
बिन बारिश के सबके दिल में छाई बड़ी उदासी है।

पहली भरन हुई तो मन में उम्मीद नई हो आई थी।
पौध रोप कर धरती पुत्र ने दिल में ख़ुशी मनाई थी।

जाने क्यों बादल रूठे ये रुत सावन की धधकाई!
सूख गए आँखों के तारे ग्रीष्म ऋतु भी शरमाई। 🎀 Challenge-268 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है।

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 59 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।
मुरझाये चेहरे सबके और पूण्य धरा ये प्यासी है।
बिन बारिश के सबके दिल में छाई बड़ी उदासी है।

पहली भरन हुई तो मन में उम्मीद नई हो आई थी।
पौध रोप कर धरती पुत्र ने दिल में ख़ुशी मनाई थी।

जाने क्यों बादल रूठे ये रुत सावन की धधकाई!
सूख गए आँखों के तारे ग्रीष्म ऋतु भी शरमाई। 🎀 Challenge-268 #collabwithकोराकाग़ज़

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