अधुरी ख्वाहीश पंख मुझे भी है माई मुझे जरा उडणे तो दे। तेरे बेटे से कम नही हु मै मुझे जरा पढने तो दे। ना कर कैद मुझे तु माई इस समाज कि जंजीरो मे। कबतक छुपा के रखेगी तु मुझको समाज के इस खोकले रिवाजो मे। दे दे एक मौका तु माई मुझे आस्मान छुने का। और फिर देख आयेगा समय तेरा सर फक्र से ऊचा होने का। क्यौ जला रही है मुझे तु माई मेरे सपनो से खेलकर। सपने बडे है मेरे माई तु जरा देख ले टटोलकर। तु भी क्या कर सकती है माई मेरा तो नशीब ही ऐसा है। अगर रौंद तु दहलीज पैरोतले मै तो तेरे पर तानो जैसा है। नही पढना मुझे माई तेरी गुनाहगार बनकर। कर देना विदा इकदिन मुझे मेरे हाथ पिले कर कर। तु रोना मत माई मेरी मेरी अधुरी ख्वाहीशोको लेकर। कोसना मत कभी तु खुद को मेरे सपनो को रौंदकर। गजानन कडु तायडे Adhuri Khwahish