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मैंने कभी कहा नहीं, लेकिन पीढ़ियां आज की क्या कहर

मैंने कभी कहा नहीं, लेकिन पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रही है? 
है जिससे स्वयं उस नींव को अब खंडहर कर रहीं है।

वर्तमान में खोकर जिसने कल को बनाया।
रहे चाहे जैसे पर हमें सब कुछ दिलाय।
वृक्ष के लिए जैसे है बीज गलता।
आज के नेत्र में स्वप्न कल का है पलता॥
 उसी नेत्र को अब वह फोड़ रही हैं।
पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रही है?

 नीव बनकर जिसने महल को संभाला।
बनाया उसे दुःस्वप्न की जिसने था पाला॥
जीवन की हर एक  पूंजी थी जिसने लगाई।
 रह गए अकेले अब वही दादा- माई॥
लताएं जड़ों का असर भूल रही हैं।
पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रही हैं? 

हुए जब बड़े हम स्वप्न को सहेज।
मिली दौलत-शोहरत नाम को न गुरेजे॥
मंदिर सम गृह को हम त्याग आए।
मां-बाप थे जो घर में हुए हैं पराए॥
अब घर की अंधेरी उन्हें डस रही है।
पीढियां आज की क्या कहर कर रहीं हैं? 

मां-बाप  अकेले ही अब रह रहे हैं।
बच्चे बुजुर्गों के सानिध्य से बच रहे हैं॥
 आज ने कल को है कल से दूर रखा।
कलियों ने फूल को वृक्ष से मरहूम रखा॥
जहां स्नेह था अब सिस्कियाँ बस रही है।
पिड़ियां आज की क्या कहर कर रही है? 

ओ वर्तमान खुद को क्यों भूलते हो।
अपने मूल से तुम निर्मूल क्यों हो ?
सुनो इतिहास यह है हमको बताता।
अपने जड़ के बीना न कोई अस्तित्व पाता।
 आओ हम पुरातन गौरव लौटाए।
 ताकि भविष्य की कोपलें मुसकुरायें॥
देखो!  कोपलें अब ये मुर्झा रही हैं।
पीढियां आज की क्या कहर कर रही हैं ? पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रहीं
मैंने कभी कहा नहीं, लेकिन पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रही है? 
है जिससे स्वयं उस नींव को अब खंडहर कर रहीं है।

वर्तमान में खोकर जिसने कल को बनाया।
रहे चाहे जैसे पर हमें सब कुछ दिलाय।
वृक्ष के लिए जैसे है बीज गलता।
आज के नेत्र में स्वप्न कल का है पलता॥
 उसी नेत्र को अब वह फोड़ रही हैं।
पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रही है?

 नीव बनकर जिसने महल को संभाला।
बनाया उसे दुःस्वप्न की जिसने था पाला॥
जीवन की हर एक  पूंजी थी जिसने लगाई।
 रह गए अकेले अब वही दादा- माई॥
लताएं जड़ों का असर भूल रही हैं।
पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रही हैं? 

हुए जब बड़े हम स्वप्न को सहेज।
मिली दौलत-शोहरत नाम को न गुरेजे॥
मंदिर सम गृह को हम त्याग आए।
मां-बाप थे जो घर में हुए हैं पराए॥
अब घर की अंधेरी उन्हें डस रही है।
पीढियां आज की क्या कहर कर रहीं हैं? 

मां-बाप  अकेले ही अब रह रहे हैं।
बच्चे बुजुर्गों के सानिध्य से बच रहे हैं॥
 आज ने कल को है कल से दूर रखा।
कलियों ने फूल को वृक्ष से मरहूम रखा॥
जहां स्नेह था अब सिस्कियाँ बस रही है।
पिड़ियां आज की क्या कहर कर रही है? 

ओ वर्तमान खुद को क्यों भूलते हो।
अपने मूल से तुम निर्मूल क्यों हो ?
सुनो इतिहास यह है हमको बताता।
अपने जड़ के बीना न कोई अस्तित्व पाता।
 आओ हम पुरातन गौरव लौटाए।
 ताकि भविष्य की कोपलें मुसकुरायें॥
देखो!  कोपलें अब ये मुर्झा रही हैं।
पीढियां आज की क्या कहर कर रही हैं ? पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रहीं
adarshsahu9289

ADARSH SAHU

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