संविधान के नाम पर थोड़ा मजा लेते है चलो चलकर दो चार बसें जला लेते है ! वो हमें देश से बाहर निकालना चाहते है चलो हाथों में पत्थर उठा लेते है ! वो हमसे सबूत मांगेंगे हमारे सही होने का भीड़ बनकर ख़ून की नदियाँ बहा लेते है ! मशवरा यही है की ना तुम जाओगे ना हम निकलेंगे एक एक कदम आहिस्ता आहिस्ता बढ़ा लेते है ! सियासत नहीं चाहती की हम कभी एक हो वो बहुत खुश है इन्हे लड़ा लेते है ! वो हमें लड़ने के लिए हमें ज़रूर उकसाएँगे चलो एक दूसरे को देने के लिए फ़ूल उठा लेते है ! मज़बूत दरख़्त खड़े रहते है आँधियों में भी तनकर छोटे पेड़ों को तो बच्चें भी हिला लेते है ! संकल्प साग़र ग़ौर देश को मज़बूत बनाने पर ध्यान दे सरकारी संपत्ति पर हमारा बराबर अधिकार है! पुलिस पर पत्थर ना फेंके उन्हें भी दर्द होता है! मेरे भाइयों वो भी अपनी माँ के बच्चे है! संकल्प साग़र ग़ौर # दो चार बसें जला लेते है !