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महज़ नैनों से , इश्क़ सरोकार नहीं होता । हाँ! तड

महज़ नैनों से , 
इश्क़ सरोकार नहीं होता । 
हाँ! तड़प बढ़ती हैं हर रोज़ , 
हर रोज़ गर तेरा दीदार नहीं होता ।। 
दिल की कहूँ , 
तो गुफ्तगू हो जाने दो । 
एक दूसरे को एक दूसरे में , 
खो जाने दो ।। 
ख्याल रहे ! सिर्फ़ मुस्कुराने से , 
या नज़र मिलाने से । 
ख़ुद इश्क़ भी अपना , दावेदार नहीं होता ।।

©Kumar Harish गुफ्तगू

#kumarharish7
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महज़ नैनों से , 
इश्क़ सरोकार नहीं होता । 
हाँ! तड़प बढ़ती हैं हर रोज़ , 
हर रोज़ गर तेरा दीदार नहीं होता ।। 
दिल की कहूँ , 
तो गुफ्तगू हो जाने दो । 
एक दूसरे को एक दूसरे में , 
खो जाने दो ।। 
ख्याल रहे ! सिर्फ़ मुस्कुराने से , 
या नज़र मिलाने से । 
ख़ुद इश्क़ भी अपना , दावेदार नहीं होता ।।

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