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जो मेरी अंजुमन में जब तक ज़िक्र ना हो तुम्हारे नाम

जो मेरी अंजुमन में जब तक ज़िक्र ना हो तुम्हारे नाम का,
मरासिम-ए-ईश्क़ अपना बेनाम सा लगता है!
जो लफ्ज़ों की ओट में झलके ना अक्श तुम्हारे नाम का,
महफ़िल का हर एक कोना वीरां सा लगता है! जो मेरी अंजुमन में जब तक ज़िक्र ना हो तुम्हारे नाम का,
मरासिम-ए-ईश्क़ अपना बेनाम सा लगता है!
जो लफ्ज़ों की ओट में झलके ना अक्श तुम्हारे नाम का,
महफ़िल का हर एक कोना वीरां सा लगता है!
जो मेरी अंजुमन में जब तक ज़िक्र ना हो तुम्हारे नाम का,
मरासिम-ए-ईश्क़ अपना बेनाम सा लगता है!
जो लफ्ज़ों की ओट में झलके ना अक्श तुम्हारे नाम का,
महफ़िल का हर एक कोना वीरां सा लगता है! जो मेरी अंजुमन में जब तक ज़िक्र ना हो तुम्हारे नाम का,
मरासिम-ए-ईश्क़ अपना बेनाम सा लगता है!
जो लफ्ज़ों की ओट में झलके ना अक्श तुम्हारे नाम का,
महफ़िल का हर एक कोना वीरां सा लगता है!
ashisaxena2926

Ashi Saxena

New Creator

जो मेरी अंजुमन में जब तक ज़िक्र ना हो तुम्हारे नाम का, मरासिम-ए-ईश्क़ अपना बेनाम सा लगता है! जो लफ्ज़ों की ओट में झलके ना अक्श तुम्हारे नाम का, महफ़िल का हर एक कोना वीरां सा लगता है!