औरों को तो पता नहीं तुम कैसी लगती हो, जैसी भी हो जो भी हो मुझको अच्छी लगती हो। इस बात का तुमने मेरी क्या मतलब समझा, मैंने तो बस ये बोला था अच्छी लगती हो। एक बात कहूँ क्या बोलों तो कह डालू एक बार क्या सौ बार भी बोलू तो कम हैं कि अच्छी लगती हो। इस सादगी का हीं श्रृंगार बहुत हैं घायल करने को, बिना किसी श्रृंगार के भी तुम कितनी अच्छी लगती हो। इस दुनिया के सारे जेवर तुम्हारे रंग पे फीके हैं जानाँ, चाँद भी खुद जलता हैं तुमसे इतनी अच्छी लगती हो। होगें हसीन चाहें लाख भले हीं और ज़माने में, मुझको तो बस तुम्हीं उन सबसे अच्छी लगती हो। ©Mahesh Kumar Bose 'Bekhud' #Poetry #lovepoetry #udaipuri #shayari #zindagikerang