प्रिय मनमें दबी आवाज़ें , क्यों गूँज रही हो तुम मन के अंदर ही , दिल के ज़ख़्मों पर रह-रह के क्यों वार करती हो , अब तुम्हें संभालना बहुत मुश्किल हो रहा है , अंदर ही अंदर मन ब्याकुल हो रहा है , तुझे बाहर लाऊँ भी तो कैसे , अपने रूठ जाएंगे , किस-किस को हम अपनी ब्यथा समझायेंगे , समझना इतना आसान नहीं , ये सबके बस की बात नहीं , तुम शब्द बनके काग़ज पे आ जाया करो , दिल के ज़ख्मों को नासूर न बनाया करो ।S.S. स्वरचित ©Sarita Saini #Nojoto #nojtohindi #मनकीआवाज #शब्द #Starss