लोग नये किरदार मे अब ढ़लते बहुत हैं गर उँचा हो मुकाम लोग जलते बहुत हैं हमदर्दी,अत्फ,अजीज-ए-करम का क्या हम अहजान-ए-वफा से डरते बहुत हैं आईना रोज गर्दिशे अक्श से रूबरू होता है बेअदाबी हय्या अब चुभते बहुत हैं बारंग तितलियाँ को ये पंख क्या मिले अपने हीं बागबां उन्हे खलते बहुत हैं हर रोज ईसी बात पे ठहरा है समन्दर शिकायत हालात से लोग करते बहुत हैं।। राजीव मिश्रा " #NojotoQuote