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अंधेरे का सफ़र भी लुभाने लगा, जब से तूफ़ा में चलन

 अंधेरे का सफ़र भी लुभाने लगा,
जब से तूफ़ा में चलने का आया हुनर।

मौत से अब तो यारी हमारी हुई,
फिजाओं में जबसे घुला है जहर।

फूल का दर्द हमसे सहा ना गया,
जबसे कांटे भी होने लगे बेअसर।

जंग जीतूंगी हमको था पूरा यकीन,
गांव से अपने आई थी जब मैं शहर।

अब हारी या जीती पता ही नहीं,
कुछ कर के दिखाने की जिद थी मगर।

दोष औरों को देना गलत बात है,
दुनियां दारी से हम ही रहे बेखबर।

©Kalpana Tomar
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