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टूटकर बिखरने को फ़िर से संवर रहा हूँ के खुदी में बे

टूटकर बिखरने को फ़िर से संवर रहा हूँ
के खुदी में बेखुदी मैं ये क्या कर रहा हूँ

समझकर ना समझी करता हैं शख्स मिरा
रूह पर जैसे बोझ कोई अपना ढोह रहा हूँ

जिसके जाने से उसकी नज़र भी ना उठे
उसको अपने ही ख़्वाब अब नज़र कर रहा हूँ

कोई सुने हिकायत मिरि तो हैरत हो कुमार 
तिरे जाने पर तो मैं भी हैरत कर रहा हूँ
                        —Kumar✍️

©The Unstoppable thoughts
  टूटकर बिखरने को फ़िर से संवर रहा हूँ
के खुदी में बेखुदी मैं ये क्या कर रहा हूँ 

समझकर ना समझी करता हैं शख्स मिरा
रूह पर जैसे बोझ कोई अपना ढोह रहा हूँ 

जिसके जाने से उसकी नज़र भी ना उठे
उसको अपने ही ख़्वाब अब नज़र कर रहा हूँ

टूटकर बिखरने को फ़िर से संवर रहा हूँ के खुदी में बेखुदी मैं ये क्या कर रहा हूँ समझकर ना समझी करता हैं शख्स मिरा रूह पर जैसे बोझ कोई अपना ढोह रहा हूँ जिसके जाने से उसकी नज़र भी ना उठे उसको अपने ही ख़्वाब अब नज़र कर रहा हूँ #Shayari #2023Recap

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