#DearZindagi दो मुट्ठी आसमान ढूंढती हूँ मैं अपनी पहचान ढूँढती हूँ ना बंगला न गाड़ी ना मकान ढूँढती हूँ जो पढ़ सके मेरे मन को वो इंसान ढूँढती हूँ न हों बेड़ियाँ जहाँ पे रीति रिवाजों की ऐसा छोटा सा जहान ढूँढती हूँ अब कट चुके पंखों में भी जान ढूँढती हूँ खुशबू सिंह दो मुट्ठी आसमान ढूँढती हूँ