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बालू के घरोंदों से खुश होते हुए उसे देखा हैं हाँ

बालू के घरोंदों से  खुश होते हुए उसे देखा हैं
 हाँ उसकी माँ को जेठ की दोपहरी मे नंगे पाँव चलते देखा है 
 भरभराकर गिरते घरोंदों से उसकी आस को टूटते देखा है
 हाँ उसकी माँ को लोगों के पक्के मकान बनाते देखा है
  सूखी सी रोटी उसे बड़े चाव से खाते देखा है 
  हाँ उसकी माँ को दो घूंट पानी से भूख मिटाते देखा है 
  जर्जर हुए आँचल की छाँव मे लिपटते हुए उसे देखा है 
  हाँ उसकी माँ को उसी आँचल से अपनी अँगिया छुपाते हुए देखा है
   हाँ मैंने ऐसे कई बचपन गलियों मे बसते देखा है
   हाँ ऐसी कई माँओ को जिंदगी से लड़ते देखा है 
   हाँ मैंने सिर्फ देखा है  और चुपचाप उन्हें देखा है #nojotohindi #nojoto #poetry #kavishala #books
बालू के घरोंदों से  खुश होते हुए उसे देखा हैं
 हाँ उसकी माँ को जेठ की दोपहरी मे नंगे पाँव चलते देखा है 
 भरभराकर गिरते घरोंदों से उसकी आस को टूटते देखा है
 हाँ उसकी माँ को लोगों के पक्के मकान बनाते देखा है
  सूखी सी रोटी उसे बड़े चाव से खाते देखा है 
  हाँ उसकी माँ को दो घूंट पानी से भूख मिटाते देखा है 
  जर्जर हुए आँचल की छाँव मे लिपटते हुए उसे देखा है 
  हाँ उसकी माँ को उसी आँचल से अपनी अँगिया छुपाते हुए देखा है
   हाँ मैंने ऐसे कई बचपन गलियों मे बसते देखा है
   हाँ ऐसी कई माँओ को जिंदगी से लड़ते देखा है 
   हाँ मैंने सिर्फ देखा है  और चुपचाप उन्हें देखा है #nojotohindi #nojoto #poetry #kavishala #books