बालू के घरोंदों से खुश होते हुए उसे देखा हैं हाँ उसकी माँ को जेठ की दोपहरी मे नंगे पाँव चलते देखा है भरभराकर गिरते घरोंदों से उसकी आस को टूटते देखा है हाँ उसकी माँ को लोगों के पक्के मकान बनाते देखा है सूखी सी रोटी उसे बड़े चाव से खाते देखा है हाँ उसकी माँ को दो घूंट पानी से भूख मिटाते देखा है जर्जर हुए आँचल की छाँव मे लिपटते हुए उसे देखा है हाँ उसकी माँ को उसी आँचल से अपनी अँगिया छुपाते हुए देखा है हाँ मैंने ऐसे कई बचपन गलियों मे बसते देखा है हाँ ऐसी कई माँओ को जिंदगी से लड़ते देखा है हाँ मैंने सिर्फ देखा है और चुपचाप उन्हें देखा है #nojotohindi #nojoto #poetry #kavishala #books