पिता! रूह में तुम्हीं उमड़ते-घुमड़ते हो तुम सबक़ का इमाम दिखाई पड़ते हो बसते हो मेरे बस्ते में, मेरी किताबों में इल्म के मोती ज़ेहन में तुम्हीं जड़ते हो # पिता! तुम रूह में बसते हो