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चाँद का टुकड़ा गोरी तोरा मुखड़ा चाँद का टुकड़ा रोटी र

चाँद का टुकड़ा गोरी तोरा मुखड़ा चाँद का टुकड़ा
रोटी रहती हरदम दुखड़ा।।
बिन गलती के डांट मैं खाता
तभी मैं रहता उखड़ा उखड़ा।। #चाँद_का_टुकड़ा


क्या समय रूपी सिंह की
यह कठोरतम दहाड़ है?
या, पानी तुम हो नाराज़ हमसे
कभी सूखा तो कभी बाढ़ है।
✍️अवधेश कनौजिया©
चाँद का टुकड़ा गोरी तोरा मुखड़ा चाँद का टुकड़ा
रोटी रहती हरदम दुखड़ा।।
बिन गलती के डांट मैं खाता
तभी मैं रहता उखड़ा उखड़ा।। #चाँद_का_टुकड़ा


क्या समय रूपी सिंह की
यह कठोरतम दहाड़ है?
या, पानी तुम हो नाराज़ हमसे
कभी सूखा तो कभी बाढ़ है।
✍️अवधेश कनौजिया©