Nojoto: Largest Storytelling Platform

जिसके लहज़े में थोड़ा भी अपना अक्स मिलता ह

जिसके  लहज़े  में  थोड़ा  भी  अपना  अक्स  मिलता  है
ऐसा  कहाँ   ज़माने  में  अब   कोई    शख़्स   मिलता  है

ख़्याल उसका इस क़दर हावी हुआ दिल से हार गया हूँ
ढूँढने  पर  हर-आदमी  उसके ही  बर-अक्स  मिलता है

मुन्फरिद  है वो, मुख़्तलिफ़  इतना अलग ही  दिखाई दे
उसे रोज़ कहाँ ख़्वाबों में आने का फिर वक़्त मिलता है

बोली में  उसके  इतनी  शग़ुफ़्ताई  कि  सुनता रहूँ बस
मगर जो भी  मिलता है  लहज़ा लिए  सख़्त मिलता है

शब-ए-फ़िराक़ गुज़ारना मुहाल हो जाता है अक्सर ही
बिन तेरे रात गुज़रे नहीं,ऐसा कोई ना दरख़्त मिलता है 

उसको ज़ुल्फ-ए-पेचाँ ऐसी कि मैं उलझ कर रह गया हूँ
निकलें कैसे, यहाँ से निकलने का कहाँ  रख़्त मिलता है

©Zulqar-Nain Haider Ali Khan
  जिसके  लहज़े  में  थोड़ा  भी  अपना  अक्स  मिलता  है
ऐसा  कहाँ   ज़माने  में  अब   कोई    शख़्स   मिलता  है

ख़्याल उसका इस क़दर हावी हुआ दिल से हार गया हूँ
ढूँढने  पर  हर-आदमी  उसके ही  बर-अक्स  मिलता है

मुन्फरिद  है वो, मुख़्तलिफ़  इतना अलग ही  दिखाई दे
उसे रोज़ कहाँ ख़्वाबों में आने का फिर वक़्त मिलता है

जिसके लहज़े में थोड़ा भी अपना अक्स मिलता है ऐसा कहाँ ज़माने में अब कोई शख़्स मिलता है ख़्याल उसका इस क़दर हावी हुआ दिल से हार गया हूँ ढूँढने पर हर-आदमी उसके ही बर-अक्स मिलता है मुन्फरिद है वो, मुख़्तलिफ़ इतना अलग ही दिखाई दे उसे रोज़ कहाँ ख़्वाबों में आने का फिर वक़्त मिलता है #Quotes #Feeling

90 Views