कभी हर बात टाल देना, कभी खुल कर बात करना, कभी चुप चाप सुन्ना मुझे, कभी ढेरों सवालात करना, परिपक्व हो तुम कितनी, मग़र फिर भी बच्ची लगती हो, अरे तुम मुझे ऎसी ही अच्छी लगती हो। वो तुम्हारा यूँ ही नाराज़ हो जाना, और फिर जल्द मान जाना, अजनबी होने का एहसास दिलाना, फ़िर करीब से पहचान जाना, कई बेतुके मज़ाक लाज़मी, मुझे फिर भी तुम सच्ची लगती हो, तुम्हारी बनावटी खुशी, ऎसी ही अच्छी लगती हो। ग़लतफ़हमियाँ पालना, फ़िर झगड़ना मुसलसल, कुछ देर का वकफ़ा और फिर माफी मुसलसल, यूँ नोक झोंक में भी तुम थोड़ी कच्ची लगती हो, अस्थायी नाराज़गी, ऎसी ही अच्छी लगती हो। दूर हो तुम काफी, मग़र दूरी ना हो बीच हमारे, दोस्ती कायम रहे, साफ दिल के दहलीज़ हमारे, किसी खूबसूरत किस्से की, तुम हूबहू पर्ची लगती हो, हाँ तुम मुझे हर तरह से अच्छी लगती हो। ऎसी ही अच्छी लगती हो! मुसलसल = continuously वकफ़ा = break पर्ची = piece of paper अस्थायी = temporary