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सूरज की किरणे कहती हैं आती तपती धूप से मेरी तो यार

सूरज की किरणे कहती हैं
आती तपती धूप से
मेरी तो यारी रहती है
सीप में निकली ओस से
ओस बदलकर होती मोती
मोती बदलकर होती माला
माला बदलकर होता हार
हार बदलकर होता व्यापार
व्यापार बदलकर होता व्यवहार
व्यवहार बदलकर होता दुराचार
दुराचार बदलकर होता सदाचार
सदाचार बदलकर होता सत्कार
सत्कार बदलकर होता संस्कार
संस्कार बदलकर होता निराकार
निराकार बदल कर होता 
एकाकार
ऐ माटी के पुतले सुन ले
सूरज की यह वाणी
जो तुझसे है निकली सुन ले
तुझ में है रमजानी
❤️

©Minakshi Shukla
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