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बहक उठेंगी बोझिल सांसें दिल पर सुरूर गर

बहक   उठेंगी  बोझिल   सांसें 
दिल  पर  सुरूर   गर  छायेगा ,
तन्हा  रातों  का हर  इक  पल 
ग़ज़लों  में  फिर  ढल  जायेगा, 
कलियों  के  होठों  का  बोसा 
जिस  पल लेने  तुम आओगी ,
शबनम में  आग  लगेगी  फिर 
फूलों   का   दर्द  बढ़  जायेगा, 
जुल्फों की  घटा जब  छाएगी 
नीले  अम्बर  पर  बादल  बन ,
मौसम  की  बेचैन  निग़ाह  से 
अश्क़    छलक   ही   जायेगा ,
कब तक हम  रोक सकेंगे इन 
मचले   आंधी   तूफानों   को , 
छू के  आंचल एक  बार  तेरा 
तूफां   भी   थम   ही  जायेगा , ❤ प्रतियोगिता- 581

 ❤आज की ग़ज़ल प्रतियोगिता के लिए हमारा विषय है 

 👉🏻🌹"बोझिल साँसे"🌹 
🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य  है I कृप्या 
केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
बहक   उठेंगी  बोझिल   सांसें 
दिल  पर  सुरूर   गर  छायेगा ,
तन्हा  रातों  का हर  इक  पल 
ग़ज़लों  में  फिर  ढल  जायेगा, 
कलियों  के  होठों  का  बोसा 
जिस  पल लेने  तुम आओगी ,
शबनम में  आग  लगेगी  फिर 
फूलों   का   दर्द  बढ़  जायेगा, 
जुल्फों की  घटा जब  छाएगी 
नीले  अम्बर  पर  बादल  बन ,
मौसम  की  बेचैन  निग़ाह  से 
अश्क़    छलक   ही   जायेगा ,
कब तक हम  रोक सकेंगे इन 
मचले   आंधी   तूफानों   को , 
छू के  आंचल एक  बार  तेरा 
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aloksaxena5479

Alok Saxena

New Creator