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"प्रेम प्रगाढ़"(गुलमोहर) ******************** मैं

"प्रेम प्रगाढ़"(गुलमोहर)
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मैं बनूँगी तपती जेठ में गुलमोहर जैसी
हज़ार यातनाएं सहकर भी अडिग खड़ी रहूँगी
लाखों बाधाएं सहकर भी प्रेम प्रगाढ़ को कम नहीं करूँगी
घर की सुंदरता बढ़ाऊंगी और छांव भी दूँगी
नए यादों को सजाऊँगी और पुरानी यादों को हटाऊंगी
आँखों को राहत भी दूँगी और अपनी केसरिया छटा भी बिखेरूँगी
खाली सुनसान सड़क को सुंदर रंगों से उसे महकाउंगी
सर्दी जब भी आएगी रात बनकर आऊँगी
हर रोज खिलूंगी और इश्क़ की छांव बिखेरूँगी
न महक बिखेरूँ कोई बात नहीं,
मगर हर बार गुलमोहर ही बनूँगी..
भरी गर्मी में भी प्रेमी से मिलन के गीत 
बन राह तकूँगी गुलमोहर की तरह...
भीनी खुशबू से  महकते हुए और,,
सुर्ख़ लाल से दहकते हुए अंगारों की तरह,
 बेहद खूबसूरत बनूँगी बिल्कुल गुलमोहर की तरह..!!

©Rishika Nath "Rishnit"
  प्रेम प्रगाढ़ "गुलमोहर"

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