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चिन्हांकित पत्थर आते जाते बैठ जाती हूं अक्स







चिन्हांकित पत्थर

आते जाते बैठ जाती हूं अक्सर किसी रास्ते पर
नहीं नहीं आते जाते राहगीरों को देखने नहीं
बल्कि उन राहों पर पड़े पत्थरों को निहारने
ढूंढती हूं उन में कुछ चिन्हांकित पत्थरों को
जो लगाए थे किसी महान पुरुष ने मानवता की सड़क पर
नए आने वाले पथिकों को रास्ता दिखाने के लिए 
खो गए हैं वो पत्थर कुछ नए दिखावटी पत्थरों के बीच
जैसे छुपा होता है हीरा कहीं कोयलों की खदानों के बीच
कुछ लोगों ने निकाल फेंका है इन पत्थरों को
शायद मानव को मानवता से भटकाने को
पर नहीं जानते वो कि इन पत्थरों की नींव बहुत गहरी है
किन्हीं तीव्र तूफानों से ये हिल तो सकती है पर गिर नहीं सकती
ये नींव की परतें कल की नहीं वरन् युगों से जमा हुई हैं
ये धरा पर नहीं बल्कि दिलों में बसी हुई हैं
आज उन पत्थरों को निकाल फेंककर देखो
कर लो नाकाम कोशिशें उन चिन्हों को मिटाने की
मिट जाओगे तुम पर हिला भी नहीं पाओगे
हमारी हस्ती को यूं मिटा नहीं पाओगे
कल जिन कुछ पत्थरों को तुमने निकाल फेंका था
अतीत के जिन चिन्हों को तुमने मिटाना चाहा था
आज देखा वहां फिर अनगिनत पत्थरों का झुंड था
मैं मुस्कराई कि नए पथिकों को फिर मार्ग मिल गया था
उन पत्थरों पर मैने फिर कुछ चिन्हों को देखा
जो पहले से भी काफी स्पष्ट और साफ थे 
जो विश्वास था वो और मजबूत हो गया था
विश्वास यह कि मेरे भारत की संस्कृति और सभ्यता की जड़े काफी गहरी है 
जो आने वाली पीढ़ी को उन चिन्हांकित पत्थरों की तरह हमेशा मार्गदर्शित करती रहेंगी
और जिन्हें बाहरी शक्तियां कभी नष्ट नहीं कर सकतीं।
-Dr Shaline Saxenaa

©Dr Shaline Saxenaa
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