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गिलहरियां यूं तो मेरा घर शहर से काफी दूर है लेकिन

गिलहरियां

यूं तो मेरा घर शहर से काफी दूर है लेकिन जिस फफूंद की तरह शहर फैल रहा है हम भी फफूंद का हिस्सा होने को हैं बिल्कुल हरियाली के हाशिए पर जहां कभी भी शहर नाम की फफूंद जकड़ लेगी हमारी हरियाली को

(Read caption for complete write up) गिलहरियां
यूं तो मेरा घर शहर से काफी दूर है लेकिन जिस फफूंद की तरह शहर फैल रहा है हम भी फफूंद का हिस्सा होने को हैं बिल्कुल हरियाली के हाशिए पर जहां कभी भी शहर नाम की फफूंद जकड़ लेगी हमारी हरियाली को।

बहरहाल मुद्दा फफूंद वाला नहीं हरियाली वाला है।
तो, हरियाली में बसा मेरा घर। चूंकि कॉलोनी नई बसी है तो शुरुआती हरियाली लोगो के नए इलाके में बसने का जोश और साथ ही अपनी टेरेटरी मार्क करने की ठसक साफ दिखाई देती है,
अब कल ही की बात लीजिए, शर्माजी के बागीचे में एक सुंदर सा भुरा सांप क्या निकला पुरी कॉलोनी में हाहाकार मच गया और कुछ तथाकथित डिस्कवरी चैनल देख देख कर वाइल्ड लाइफ रिहैबिलिटेशन एक्सपर्ट जो बने थे आ गए उसे बचाने। खाक बचाया, जान निकाल कर गर्व से सारी जनता को देख रहे थे और ज्ञान कि पुड़िया बांट रहे थे कि ये तो ज़हरीला था।
खैर बात पुरानी हो गई सब अपने अपने कामों में लगे हुए थे और मैं भी, गर्मी बहुत तेज़ होने की वजह से मैने और मां ने तय किया कि रोज थोड़ा बाजरा या बची हुई रोटी या जो भी घर में हमारे खाने के लिए आएगा वो थोड़ा छोटे छोटे प्यारे प्यारे दोस्तों को भी दिया जाएगा। 
मुझे याद है एक दिन मैं पास ही की एक दुकान से कुछ नमकीन ले कर आया और किसी कारण से खा नहीं पाया, नमकीन था कितना चलता थोड़ा महकने लगा तो मेरी मां ने उसमे पड़े सारे मूंगफली के दाने निकाल कर घर के बरामदे की दीवार पर रख दिए, थोड़ी देर में ही कोई पीली चोंच वाली कोई काली पूंछ वाली प्यारी प्यारी चिड़ियाएं आई और दाने खाने लगी। थोड़ी लड़ कर झगड कर।
गिलहरियां

यूं तो मेरा घर शहर से काफी दूर है लेकिन जिस फफूंद की तरह शहर फैल रहा है हम भी फफूंद का हिस्सा होने को हैं बिल्कुल हरियाली के हाशिए पर जहां कभी भी शहर नाम की फफूंद जकड़ लेगी हमारी हरियाली को

(Read caption for complete write up) गिलहरियां
यूं तो मेरा घर शहर से काफी दूर है लेकिन जिस फफूंद की तरह शहर फैल रहा है हम भी फफूंद का हिस्सा होने को हैं बिल्कुल हरियाली के हाशिए पर जहां कभी भी शहर नाम की फफूंद जकड़ लेगी हमारी हरियाली को।

बहरहाल मुद्दा फफूंद वाला नहीं हरियाली वाला है।
तो, हरियाली में बसा मेरा घर। चूंकि कॉलोनी नई बसी है तो शुरुआती हरियाली लोगो के नए इलाके में बसने का जोश और साथ ही अपनी टेरेटरी मार्क करने की ठसक साफ दिखाई देती है,
अब कल ही की बात लीजिए, शर्माजी के बागीचे में एक सुंदर सा भुरा सांप क्या निकला पुरी कॉलोनी में हाहाकार मच गया और कुछ तथाकथित डिस्कवरी चैनल देख देख कर वाइल्ड लाइफ रिहैबिलिटेशन एक्सपर्ट जो बने थे आ गए उसे बचाने। खाक बचाया, जान निकाल कर गर्व से सारी जनता को देख रहे थे और ज्ञान कि पुड़िया बांट रहे थे कि ये तो ज़हरीला था।
खैर बात पुरानी हो गई सब अपने अपने कामों में लगे हुए थे और मैं भी, गर्मी बहुत तेज़ होने की वजह से मैने और मां ने तय किया कि रोज थोड़ा बाजरा या बची हुई रोटी या जो भी घर में हमारे खाने के लिए आएगा वो थोड़ा छोटे छोटे प्यारे प्यारे दोस्तों को भी दिया जाएगा। 
मुझे याद है एक दिन मैं पास ही की एक दुकान से कुछ नमकीन ले कर आया और किसी कारण से खा नहीं पाया, नमकीन था कितना चलता थोड़ा महकने लगा तो मेरी मां ने उसमे पड़े सारे मूंगफली के दाने निकाल कर घर के बरामदे की दीवार पर रख दिए, थोड़ी देर में ही कोई पीली चोंच वाली कोई काली पूंछ वाली प्यारी प्यारी चिड़ियाएं आई और दाने खाने लगी। थोड़ी लड़ कर झगड कर।