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सामने मंज़िल थी और, मै बेखबर न कर पाया ऐतबार. श

सामने मंज़िल थी और, 

मै बेखबर न कर पाया  ऐतबार. 
शिद्दत से जो लगा रहता है शायद,  
उनको मुकाम का  यूँ ही होता है दीदार #मुकाम
सामने मंज़िल थी और, 

मै बेखबर न कर पाया  ऐतबार. 
शिद्दत से जो लगा रहता है शायद,  
उनको मुकाम का  यूँ ही होता है दीदार #मुकाम