भाग-दौड़ जिंदगी तू मुझे समझ नहीं आती है जब लगा सही हैं बस तभी पलट जाती है साथ तो पूरा दे रही है पर ज़रा गज़ब कर रही है सीधे चलते चलते यूं मुड़ती है जैसे पीछे कोई रास्ता ही नहीं कहीं जाकर यूं रूकती है जैसे कहीं जाना है जैसे ही बिछाया बिछौना यूँ चल पड़ी जैसे कभी रुकी ही नहीं जिंदगी तू मुझे समझ नही आयी है तू चाहती क्या कभी बताएगी क्या? dkk